अन्य कार्य
(1) इसने मई 1949 में राष्ट्रमंडल में भारत की सदस्यता का सत्यापन किया।
(2) इसने 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्रीय ध्वज को अपनाया।
(3) इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गान को अपनाया।
(4) इसने 24 जनवरी, 1950 को राष्ट्रीय गीत को अपनाया।
(5) इसने 24 जनवरी, 1950 को डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में चुना।
2 साल, 11 माह और 18 दिनों में संविधान सभा की कुल 11 बैठकें हुईं। संविधान निर्माताओं ने लगभग 60 देशों के संविधानों का अवलोकन किया और इसके प्रारूप पर 114 दिनों तक विचार हुआ। संविधान के निर्माण पर कुल 64 लाख रुपये का खर्च आया।
24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा की अंतिम बैठक हुई।
संविधान सभा की समितियां
(1) संघ शक्ति समिति — जवाहर लाल नेहरू
(2) संघीय संविधान समिति — जवाहर लाल नेहरू
(3) प्रांतीय संविधान समिति — सरदार पटेल
(4) प्रारूप समिति — डॉ. बी. आर. अंबेडकर
(5) मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों एवं जनजातियों तथा बहिष्कृत क्षेत्रों के लिए सलाहकार समिति (परामर्शदाता समिति)
— सरदार पटेल
(6) संचालन समिति — डॉ. राजेंद्र प्रसाद
(7) राज्यों के लिए समिति (राज्यों से समझौता करने वाली) — जवाहर लाल नेहरू
प्रारूप समिति
संविधान सभा की सभी समितियों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण थी प्रारूप समिति। इसका गठन 29 अगस्त, 1947 को हुआ था। यह वह समिति थी जिसे नए संविधान का प्रारूप तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। इसमें सात सदस्य थे, जिनके नाम इस प्रकार हैं:
(1) डॉक्टर बी. आर. अंबेडकर (अध्यक्ष)
(2) एन. गोपालस्वामी आयंगार
(3) अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर
(4) डॉक्टर के. एम. मुंशी
(5) सैय्यद मोहम्मद सादुल्ला
(6) एन. माधव राव (इन्होंने बी. एल. मित्र की जगह ली, जिन्होंने स्वास्थ्य कारणों से त्याग-पत्र दे दिया था।
(7) टी. टी. कृष्णामाचारी (इन्होंने सन् 1948 में डी. पी. खेतान की मृत्यु के बाद उनकी जगह ली)।
26 नवंबर, 1949 को अपनाए गए संविधान में प्रस्तावना, 395 अनुच्छद और 8 अनुसूचियां थीं। प्रस्तावना को पूरे संविधान को लागू करने के बाद लागू किया गया। नए विधि मंत्री डॉ. बी. आर. अंबेडकर ने सभा में संविधान के प्रारूप को रखा। उन्होंने सभा के कार्य-कलापों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हें अपनी तर्कसंगत व प्रभावशाली दलीलों के लिए जाना जाता था। उन्हें ‘भारत के संविधान के पिता’ के रूप में पहचाना जाता है। इस महान लेखक, संविधान विशेषज्ञ, अनुसूचित जातियों के निर्विवाद नेता और भारत के संविधान के प्रमुख शिल्पकार को आधुनिक मनु की संज्ञा भी दी जाती है।
संविधान सभा की आलोचना
(1) यह प्रतिनिधि निकाय नहीं थीः आलोचकों ने दलीलें दी हैं कि संविधान सभा प्रतिनिधि सभा नहीं थी क्योंकि इसके सदस्यों का चुनाव भारत के लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर नहीं हुआ था।
(2) संप्रभुता का अभावः आलोचकों का कहना है कि संविधान सभा एक संप्रभु निकाय नहीं थी क्योंकि इसका निर्माण ब्रिटिश सरकार के प्रस्तावों के आधार पर हुआ। यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा अपनी बैठकों से पहले ब्रिटिश सरकार से इजाजत लेती थी।
(3) समय की बर्बादीः आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा ने इसके निर्माण में जरूरत से कहीं ज्यादा समय ले लिया। उन्होंने कहा कि अमेरिका के संविधान निर्माताओं ने मात्र 4 माह में अपना काम पूरा कर लिया था। निराजुद्दीन अहमद, संविधान सभा के सदस्य, ने इसके लिए अपनी अवमानना दर्शाने के लिए प्रारूप समिति हेतु एक नया नाम गढ़ा। उन्होंने इसे ‘अपवहन समिति’ कहा।
(4) कांग्रेस का प्रभुत्वः आलोचकों का आरोप है कि संविधान सभा में कांग्रेसियों का प्रभुत्व था। ब्रिटेन के संविधान विशेषज्ञ ग्रेनविले ऑस्टिन ने टिप्पणी की, “संविधान सभा एक-दलीय देश का एक दलिय निकाय है।
(5) वकीलों और राजनीतिज्ञों का प्रभुत्वः यह भी कहा जाता है कि संविधान सभा में वकीलों और नेताओं का बोलबाला था। उन्होंने कहा कि समाज के अन्य वर्गों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला। उनके अनुसार, संविधान के आकार और उसकी जटिल भाषा के पीछे भी यही मुख्य कारण था।
(6) हिंदुओं का प्रभुत्वः कुछ आलोचकों के अनुसार, संविधान सभा में हिंदुओं का वर्चस्व था। लॉर्ड विसकाउंट ने इसे ‘हिंदुओं का निकाय’ कहा। इसी प्रकार विंस्टन चर्चिल ने टिप्पणी की कि, संविधान सभा ने ‘भारत के केवल एक बड़े समुदाय’ का प्रतिनिधित्व किया।