Lecture – 1

CategoriesIndian polity

1600 ई0 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के रुप में ब्रिटिश भारत आए। 1764 तक, कम्पनी के कार्य सिर्फ व्यापारिक कार्यों तक ही सीमित थे, 1765 में बंगाल, बिहार और उड़ीसा के दीवानी (राजस्व एवं दीवानी न्याय के अधिकार) अधिकार प्राप्त कर लिए।

इसके तहत भारत में उसके क्षेत्रीय शक्ति बनने की प्रक्रिया प्रारम्भ हुई। 1858 में सिपाही विद्रोह के परिणामस्वरुप ब्रिटिश ताज ने भारत के शासन का उत्तरदायित्व प्रत्यक्षतः अपने हाथों में ले लिया।

कम्पनी का शासन – 1773 से 1858 तक

ताज का शासन –  1858 से 1947 तक

1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट

भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कार्यों को नियमित और नियंत्रित करने की दिशा में ब्रिटिश सरकार द्वारा उठाया गया यह पहला कदम था।

इसके द्वारा पहली बार कम्पनी के प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों को मान्यता मिली।

इसके द्वारा भारत में केन्द्रीय प्रशासन की नींव रखी गयी।

इस अधिनियम द्वारा बंगाल के गवर्नर को “बंगाल का गवर्नर जनरल” पद का नाम दिया गया एवं गवर्नर जनरल की सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद का गठन किया गया।

बंगाल के पहले गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स थे।

इस अधिनियम के अन्तर्गत कलकत्ता में 1774 में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गयी।

इस एक्ट के द्वारा ब्रिटिश सरकार का “कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स” (कम्पनी की गवर्निंग बॉडी) के माध्यम से कम्पनी पर नियंत्रण सशक्त हो गया।

इसके तहत कम्पनी के कर्मचारियों को निजी व्यापार करने तथा भारतीय लोगों से उपहार व रिश्वत लेना प्रतिबन्धित कर दिया गया।

1784 का पिट्स इण्डिया एक्ट

इसके द्वारा कम्पनी के राजनैतिक और वाणिज्यिक कार्यों को पृथक कर दिया गया।

इस अधिनियम ने निदेशक मण्डल को कम्पनी के व्यापारिक मामलों के अधीक्षण की अनुमति तो दे दी लेकिन राजनैतिक मामलों के प्रबंधन के लिए नियंत्रण बोर्ड (बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल) नाम से एक नए निकाय (संस्था) का गठन कर दिया।

यह अधिनियम दो कारणों से बहुत ही महत्वपूर्ण था —

     (1) भारत में कम्पनी के अधीन क्षेत्र को पहली बार “ब्रिटिश अधिपत्य का क्षेत्र” कहा गया।

     (2) ब्रिटिश सरकार को भारत में कम्पनी के कार्यों और इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण प्रदान किया गया।

1833 का चार्टर अधिनियम

इस अधिनियम ने बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया, जिसमे सभी नागरिक और सैन्य शक्तियां निहित थी। लार्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे।

ईस्ट इण्डिया कम्पनी की एक व्यापारिक निकाय के रुप में की जाने वाली गतिविधियों को समाप्त कर दिया गया। अब यह विशुद्ध रुप से प्रशासनिक निकाय बन गया।

1853 का चार्टर अधिनियम

oइस अधिनियम ने पहली बार गवर्नर जनरल की परिषद के विधायी एवं प्रशासनिक कार्यों को अलग कर दिया।

इसके तहत परिषद में 6 नए पार्षद जोड़े गए, इन्हे विधान पार्षद कहा गया।

इसने सिविल सेवकों की भर्ती एवं चयन हेतु खुली प्रतियोगिता का शुभारम्भ किया, इस प्रकार विशिष्ट सिविल सेवा भारतीय नागरिकों के लिए खोल दी गयी और इसके लिए 1854 में भारतीय सिविल सेवा के संबंध में मैकाले समिति की नियुक्ति की गयी।

इसने प्रथम बार भारतीय केन्द्रीय विधान परिषद में स्थानीय प्रतिनिधित्व प्रारम्भ किया।

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